दहेज-दानव के खिलाफ निशिकांत झा की लड़ाई-आखिर कब तक? !

मातृभाषी और सामाजिक सरोकारों के ज्ञाता फ़िल्म लेखक-निर्माता निशिकांत झा सारी वर्जनाओं को दरकिनार करते हुए। एक हिन्दी फ़िल्म ला रहे है।”आखिर कब तक?”इस इस फ़िल्म के निर्देशक है दिया और तूफान फेम मिथिलेश अविनाश।जाति धर्म के लाफ़रो से अलग एक सर्वथा व्यवहारिक बात को लेकर निशिकांत झा की फ़िल्म आगे बढ़ती है। लाख तरक्की के बाद भी हमारा देश, यहां का हर समाज,हर खेमा दहेज के शिकंजे से अब तक जकड़ा हुआ है।तरीके और स्वरुप भले ही बदले हुए है पर दहेज का ना लेना बंद हुआ है न उसके लिए दी जानेवाली प्रताड़ना ही ख़त्म हुई है।लेकिन” आखिर कब तक?” सिर्फ सैद्धांतिक रूप से दहेज़ का विरोध नहीं करती है बल्कि इसके मूल्य कारणों पर भ. ी ध्यान केंद्रित करती है।अब दहेज़ को लेकर सिर्फ लड़की या लड़की पक्ष ही प्रताड़ित नही होते, इसका शिकार वर पक्ष भी हो रहे है।इन सारी विसंगतियों को खुलासा करती है,आखिर कब तक?  फ़िल्म के मुख्य कलाकार है मनीषा सिंह और विनय राणा है।दोनों हिन्दी फ़िल्म में पहली बार दिखाई देंगे।मॉडल एक्ट्रेस मनीषा । तेलगु मराठी फिल्में कर1 चुकी है।इनके शाथ में राम सुजान सिंह, विनोद मिश्रा, मेहनाज श्राफ और प्रतिभा पांडे भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में है।रूप के गीत,जयंत आर्यन का संगीत और डी. के शर्मा का छायांकन सुंदर है।मनाली की वादियों में फिल्माये गएदो गीत बेहद खूबसूरत फिल्माये गए है।रानू पांडे का आईटम गीत भी लुभावना है, जिसके निर्त्य निर्देशक संतोष सर्वदर्शी है।हिरा यादव का एक्शन है।महाबलेश्वर, कर्जत, मुंबई में फिल्मायी गयी यह फ़िल्म पोस्ट प्रोडक्शन में है।

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